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विवाह प्रथा की शुरुआत कैसे हुई ?

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विवाह प्रथा की शुरुआत कैसे हुई ?

नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं आप सभी? इस लेख में, हम जानेंगे विवाह प्रथा की शुरुआत कैसे हुई ? 

विवाह प्रथा आज सारे संसार में प्रचलित है. प्राचीन समय में तो विवाह कई तरीकों से होता था, लेकिन वर्तमान युग में नियोजित विवाह और प्रेम विवाह ही अधिक लोकप्रिय हैं. विवाह के पश्चात् लड़के और लड़की को पति-पत्नी के नाम से पुकारा जाता है. 

पति को अंग्रेजी भाषा में हसबैण्ड ( Husband ) कहते हैं, जिसका अर्थ होता है- घर का स्वामी ( Master of House ), विवाह के बाद प्रत्येक व्यक्ति हसबैण्ड या गृह स्वामी के नाम से पुकारा जाने लगता है. क्या आप जानते हो कि पति-पत्नी के रिश्ते यानी विवाह की शुरुआत कैसे हुई?

विवाह प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है. अब तक यह विवाह तीन स्थितियों से गुजर चुका है.एक समय था, जब शादियां शक्ति के बल पर होती थीं. आदमी को जो लड़की पसंद होती थी, उसे वह चुराकर या ताकत से जीतकर ले आता था. इसके बाद अपनी पत्नी बना लेता था. 

राजा - महाराजाओं में स्वयम्बर द्वारा विवाह की प्रथा भी प्रचलित थी. स्वयम्बर में लड़की का पिता कोई कठिन कार्य करने की शर्त रखता था, जो भी व्यक्ति उस कार्य को पूरा कर देता था, लड़की उसी के गले में वरमाला डाल देती थी. सीता स्वयम्बर इसी प्रकार के विवाह का एक उदाहरण है. 

इसके बाद एक समय ऐसा आया, जब दूसरे प्रकार की शादियों की शुरुआत हुई. इस तरीके के अंतर्गत आदमी लड़की वालों को धन देकर लड़की खरीद लेता था और खरीदी हुई लड़की उसकी पत्नी हो जाती थी. इसके बाद शादियों का तीसरा तरीका लोकप्रिय हुआ. 

इसके अंतर्गत लड़की वाले लड़के वालों के यहां विवाह तय करने जाने लगे. शादियों का यह तरीका आज भी अपने देश में प्रचलित है. इसके अतिरिक्त कुछ लड़के- लड़कियों के परस्पर प्रेम के फलस्वरूप भी शादियां होने लगी हैं.

विवाह वास्तव में एक ऐसा सामाजिक बंधन है, जो नारी ( स्त्री ) को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है. संसार के अलग- अलग देशों में विभिन्न रीतियों से शादियां की जाती हैं. उदाहरण के तौर पर ईसाई गिरजाघर में अपनी विवाह रस्म पूर्ण करते हैं. हिंदुओं में अग्नि को साक्षी मानकर शादी की रस्म पूरी की जाती है. 

परिणय-पर्व पर दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं. यह इस बात का सूचक है कि सम्पूर्ण जीवन स्नेहपूर्वक हिलमिल कर गुजारना है. यहां एक मांगलिक भावना एवं दार्शनिक तथ्य भी निहित है. वह यह कि अंगूठी वृत्ताकार होती है. और वृत्त पूर्णता का द्योतक होता है.

शादी के बाद पति- पत्नी एक दूसरे के जीवनसाथी बन जाते हैं. सच्चे अर्थों में कर्तव्य और जिम्मेदारी व्यक्ति शादी के बाद ही सीखता है.

इस लेख में हमने जाना विवाह प्रथा की शुरुआत कैसे हुई ? अगर आपको इस लेख से जुड़े कोई प्रश्न है या आप किसी और विषय के बारे में जनना चहते हैं तो हमें कमेंट कर के बताएं और यदि आपको हमारा ये लेख पसंद आया और आपको इस लेख से कुछ नया जनने को मिला तो निचे दिए गए सोशल मीडिया बटन को दबा कर इस लेख को अपने मित्रों के साथ शेयर करें.

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